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स्वंयम्भू भोले नाथ के दर्शन मात्र से होतें हैं कष्ट दूर,सावन में हर दिन पहुंचते हैं सैकड़ो श्रद्धालु।

बिलासपुर। शहर के सिरगिट्टी के वार्ड नंबर 10 स्थित प्राचीन स्वंयम्भू मंदिर में श्रावण मास में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी सभी में खुशहाली बनी रहे इस कामना को लेकर शिव भक्तों द्वारा शिवलिंग व शिव प्रतिमा उज्जैन में विराजित महाकालेश्वर महाराज रूप स्वरूप विराजित कराया गया है।

(प्राचीन स्वयंम्भू प्रतिदिन श्रृंगार भभूती तो कभी फूलो से सजतें रहते हैं महादेव)

सिरगिट्टी के इस मंदिर में प्रतिदिन मंत्रोच्चार के साथ भगवान भोलेनाथ का अलग अलग श्रृंगार किया जाता है भगवान की मूर्ति को कभी भभूती तो कभी फूलो से सजाया जाता है पूर्ण विधिवत रूप से रुद्राभिषेक कराया जा रहा है। मंदिर के महराज निखिल तिवारी ने बताया की रुद्राभिषेक यूं तो कभी भी किया जाए यह बड़ा ही शुभ फलदायी माना गया है।लेकिन सावन माह में इसका महत्व कई गुना होता है शिवपुराण के रुद्रसंहिता में बताया गया है रुद्राभिषेक में भगवान शिव का पवित्र स्नान कराकर पूजा-अर्चना की जाए सनातन धर्म में सबसे प्रभावशाली पूजा मानी जाती है जिसका फल तत्काल प्राप्त होता है.इससे भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों के सभी कष्टों का अंत करते हैं और सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करते हैं,क्षेत्र वाशियो में खुशहाली की कामना करते हुए यह पूजा में पहुंचे भृगु अवस्थी ने बताया की यहां लोग परिवार सहित व आसपास इलाके की महिलाएं व बच्चे पूरे एक माह तक पुुजा में सम्मलित रहते है प्रति सोमवार यहां दर्शनार्थियों का रेला लगा रहता है दूर दूर से लोग भगवान के मोहक रूप के दर्शन करने पहुँचते हैं।

              (प्राचिन काल से पूजे जा रहे स्वयंभू)

प्राचीन स्वंयम्भू मंदिर में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी सभी में खुशहाली बनी रहे इस कामना को लेकर शिव भक्तों द्वारा शिवलिंग को पितांबरी मे तब्दील की गई है.पूर्व मे शिव प्रतिमा उज्जैन में विराजित महाकालेश्वर महाराज रूप स्वरूप विराजित कराया गया है,बुजुर्गों की माने तो सन 1963 में तालाब के मेड से एक पत्थर नुमा आकार का शिवलिंग देखा गया,जो तिरछा था गाँव के लोगो ने मिलकर उसे निकालने व सीधा करने कमर तक मिट्टी की खुदाई की परन्तु शिवलिंग को हिला न सके उक्त गड्ढे में पानी भी डाला गया परन्तु उससे भी शिवलिंग नही हिला लोगों ने वहाँ पूजा अर्चना करना प्रारंभ कर दिए,लोगो में आस्था इतना जटिल हो गया कि चंदा करके वहाँ छोटा सा मंदिर बनवाए देखते देखते लोगो का आस्था बढ़ता गया और सन 1997 से अब तक मंदिर का दो बार जीर्णोद्धार किया जा चुका है।

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