बिलासपुर | सिरगिट्टी स्थित नजरलालपारा वार्ड नं 12 में चल रहे संगीतमय श्रीमद् भागवत ज्ञान कथा आयोजन के छठवें दिन प्रयागराज से पहुंचे व्यासपीठ पर आसीन श्रद्धेय पंडित गिरिजेश कुमार द्विवेदी ने कंस वध व रुकमणी विवाह के प्रसंगों का बखान किया। कथा व्यास ने श्रोताओं को बताया कि भगवान विष्णु के पृथ्वी लोक में अवतरित होने के कई प्रमुख कारण थे,जिसमें एक कारण कंसवध भी था। कथा मे बताया की कंस के अत्याचार से पृथ्वी जब त्राहि त्राहि करनें लगीं तब पृथ्वी के लोग भगवान से गुहराने लगें|तब कृष्ण जी का अवतरण हुआ। और कंस को यह भी पता था कि उसका वध श्रीकृष्ण के हाथों होना निश्चित है।इसीलिए वह बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण जी की अनेक बार हत्या करवाने का प्रयास किया,लेकिन हर बार भगवान के सामने वह असफल होता रहा 11 वर्ष की आयु में कंस ने अपने प्रमुख अकरुर के द्वारा मल्लयुद्ध के बहाने कृष्ण,बलराम को मथुरा बुलवाकर शक्तिशाली योद्धा के साथ ही पागल हाथियों से कुचलवाकर मारने की कोशिश भी की,परन्तु वह सब श्रीकृष्ण और बलराम के हाथ मृत्यु को प्राप्त हो गए। और आखिर में श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर मथुरा नगर को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाया। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता वासुदेव और देवकी जी को कारागार से मुक्त कराया,वहीं कंस के द्वारा अपने पिता उग्रसेन महाराज को भी बंदी बनाकर कारागार में रखा था, उन्हें भी श्रीकृष्ण ने मुक्त कर मथुरा के सिंहासन पर आसीन कराया। पंडित ने बताया कि रुकमणी जी को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।जो विदर्भ साम्राज्य की पुत्री थी,जो विष्णु रूपी श्रीकृष्ण से विवाह करनें इच्छुक थी। परन्तु रुकमणी के पिता व भाई इससे सहमत नहीं थे।जिसके चलते उन्होंने रुकमणी के विवाह में जरासंध और शिशुपाल को भी विवाह के लिए आमंत्रित किया था,जैसे ही इस खबर का पता रुकमणी को चला तो उन्होंने दूत के माध्यम से अपने दिल की बात श्रीकृष्ण तक पहुंचाई और काफी संघर्ष हुआ।साथ ही युद्ध के बाद अंततःश्री कृष्ण रुकमणी से विवाह करनें में सफल रहें ।
द बिलासा टाइम्स