राष्ट्रीय / अंतराष्ट्रीय

तिब्बती दुनिया भर में निर्वासन में जीवन जीने को मजबूर है।

                                                    बिलासपुर तिब्बत में चीन की लगातार सैन्य गतिविधियां बढ़ने लगे है तिब्बत पर वहां के नागरिकों से ज्यादा चीन के सैनिक वहा पर रह रहे है। वही तिब्बती दुनिया भर में निर्वासन में जीवन जीने को मजबूर है।

इन्ही समस्याओं एवम अपनी मांगो को लेकर आज बिलासपुर प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता कर तिब्बत पार्लिटामेंट ले एकसाइल के डिप्टी स्पीकर डोल्मा थेरिंग लेथिंग , ताशी देलक और गैंगचेन किशोंग ने अपनी बातें रखी।

उन्होंने कहा कि दुनिया भर में निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों द्वारा लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई 17वीं निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्य होने के साथ ही निर्वासित जीवन जी रहे और तिब्बत के भीतर रह रहे 60 लाख से अधिक तिब्बतियों के प्रतिनिधि के तौर पर भी हम महामहिम की सरकार के सामने चीनी कम्युनिस्ट शासन के तहत तिब्बती लोगों के समक्ष आने वाले सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों को लाना चाहते हैं।

पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) द्वारा 1949 में तिब्बत पर आक्रमण करने के बाद से तिब्बती लोगों के मूलभूत मानवाधिकारों का व्यवस्थित रूप से उल्लंघन हो रहा है। ये तिब्बती लोग अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान पर उपस्थित खतरे से आहत हैं। तिब्बत में स्थिति पिछले सात दशकों में बद से बदतर होती गई है। स्थिति इस कदर खराब हो रही है कि तिब्बत अब अपने सांस्कृतिक संहार और पहचान के पूर्ण विनाश के खतरे का सामना कर रहा है।

ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो तिब्बत शुरू से स्वतंत्र राष्ट्र था, जिसका एक परिभाषित क्षेत्र, विशिष्ट आबादी और सरकार हुआ करती थीं। अतीत में उसने अपने पड़ोसी देशों के साथ राजनयिक संबंध भी बना रखे थे। चीन द्वारा 1959 में अवैध कब्जे से पहले के करीब दो हजार से अधिक वर्षों तक तिब्बत भौगोलिक दृष्टि से दो एशियाई दिग्गजों भारत और चीन के बीच बफर राज्य के रूप में अस्तित्व में रहा।

तिब्बत और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण सह-अस्तित्व और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का हजारों सालों का इतिहास रहा है। तिब्बत और भारत समृद्ध, प्राचीन और समकालीन सभ्यताओं वाले पड़ोसी देश रहे हैं। इस तरह से अतीत मेंभारत और चीन के बीच कभी भी किसी भी प्रकार की सीमा नहीं मिलती थी। हालांकि चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जे के बाद से भारत और चीन के बीच सीमा अस्तित्व में न केवल आ गई है, बल्कि वह विवाद का विषय भी बनी हुई है। इन सीमाओं के पीछे हमारे तिब्बती भाई-बहन हैं। इन पर चीन का आधिपत्य कायम है और चीनी दमनकारी नीतियों के तहत तिब्बती लोगों का उत्पीड़न जारी है।

यह लगातार तीसरा वर्ष है, जब फ्रीडम हाउस की विश्व स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट- 2023 में फिर से तिब्बत को दुनिया में सबसे कम स्वतंत्र देश के रूप में स्थान दिया गया है। पिछले साल, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने तिब्बत में बड़े पैमाने पर स्थापित किए जा रहे औपनिवेशिक तरीके के अनिवार्य आवासीय स्कूलों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। साथ ही इसे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार के मानकों के विपरीत और तिब्बती संस्कृति को बहुसंख्यक हान संस्कृति में विलय करने की साजिश के तौर पर देखा था। इसी तरह, किंडरगार्टन की उम्र तक के तिब्बतियों से जबरन सामूहिक डीएनए नमूना संग्रह अधिनायकवादी शासन द्वारा उनके सार्वजनिक और निजी जीवन के सभी पहलुओं में भय पैदा करने के लिए है। इस तरह के अभियान का मूल उद्देश्य उनके निजी जीवन पर नियंत्रण स्थापित कर उसकी निगरानी करना और कठोर शासन के तहत उनके निजी जीवन में जबरन घुसपैठ करना हो सकता है। तिब्बत पर चीन सरकार

द्वारा वर्षों से थोपी गई क्रूर नीतियों के विरोध में फरवरी 2009 से अब तक ज्ञात रूप से विभिन्न क्षेत्रों के 158 तिब्बतियों ने आत्मदाह कर लिया है। इन तिब्बतियों ने अपने अंतिम समय में एक ही बात का नारा दिया और वह यह कि परम पावन दलाई लामा की तिब्बत वापसी हो और तिब्बती लोगों की स्वतंत्रता फिर से बहाल हो।

तिब्बती लोगों ने चीनी कम्युनिस्ट सरकार के क्रूर दमन के बावजूद पिछले 74 वर्षों से शांतिपूर्ण प्रतिरोध को जारी रखा है और चीन के औपनिवेशिक कब्जे को सहन कर रहे है। इस दौरान परम पावन महान 14वें दलाई लामा के मार्गदर्शन में अहिंसा के प्रति हमारा लचीलापन और हमारी प्रतिबद्धता दुनिया में स्वतंत्रता और न्याय चाहने वाले अन्य लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती रही हैं। ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि तिब्बती नागरिक के तौर पर हमारी स्थिति और अधिकारों को मान्यता दी जाए और उनकी पुनः पुष्टि की जाए। इसके लिए तिब्बत-चीन के विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के हमारे आह्वान का समर्थन किया जाए और उसे मजबूत किया जाए। उग्यूर, दक्षिणी मंगोलियाई और हांगकांगवासी चीनी कम्युनिस्ट शासन के हाथों दमन, सांस्कृतिक संहार, मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन और अनुचित उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।

तिब्बत-चीन संघर्ष को हल करने के लिए केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) ने अपनी मध्यम मार्ग नीति के आधार पर 2002 से लेकर 2010 के बीच नौ दौर की वार्ता में शिरकत की और इस दौरान विश्वास-निर्माण उपायों की श्रृंखला शुरू करने के लिए हरसंभव प्रयास किया है। 2010 के बाद से पीआरसी के साथ कोई बातचीत नहीं हुई है और गेंद पूरी तरह से चीनी सरकार के पाले में है। फिर भी सीटीए मध्यम मार्ग नीति के माध्यम से तिब्बती और चीनी दोनों लोगों के सर्वोत्तम हित में तिब्बत-चीन संघर्ष को बातचीत के माध्यम से हल करने के लिए दृढ़ प्रतिबद्ध है और उसने अपने दरबाजे बातचीत के लिए खुला छोड़ रखा है।

इसके अलावा, हम मानते हैं कि तिब्बत पर चीन के कब्जे को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मान्यता देना और तिब्बती लोगों को आत्मनिर्णय के अधिकार से वंचित करने के लिए चीन सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराना अंतरराष्ट्रीय कानून और कानून के शासन को बनाए रखने के प्रयासों को कमजोर करता है। इसे बदलने के लिए चीन सक्रिय रूपसे काम कर रहा है। इसी तरह, तिब्बत मामले को लेकर चीन को खुश करते रहने से भी चीन को दूसरे क्षेत्रीय दावों को दबाने के लिए प्रोत्साहित करता है। कई सरकारें ऐसा कर भी रही हैं। चीन ज्यादातर झूठे या भ्रामक ऐतिहासिक आख्यानों का उपयोग करता है और वह तिब्बत पर अपने दावे को सही ठहराने के लिए उनका उपयोग करता है। चीन के राष्ट्रपति डेंग सेलेकर शी युग तक का राजनीतिक प्रक्षेप पथ या सर्कल इस धारणा को खारिज करता है कि जैसे-जैसे पीआरसी आर्थिक रूप से आगे बढ़ेगी। यह स्वाभाविक रूप से अधिक उदार हो जाएगी। धारणा यह भी रही है कि किसी भी तरह 21वीं सदी में महान शक्तियां हावी होने के अपने मूल आग्रह पर कार्य नहीं करेंगी। लेकिन चीन की बढ़ती विस्तारवादी और जुझारू नीतियों से पता चलता है कि सहायक रणनीतियों की विफलता के बाद तुष्टीकरण नीति की विफलता भी सामने आई है।

इन परिस्थितियों को देखते हुए हम आपकी सरकार से निम्नलिखित प्रस्ताव की अपील करते हैं और आपसे आग्रह करते हैं कि –

1. ऐतिहासिक तौर पर स्वतंत्र और संप्रभुता संपन्न अतीत वाले तिब्बत को वर्तमान में अतिक्रमित राष्ट्र के रूप में मान्यता दें।

2. चीन कई तरह के झूठे कथानक गढ़ता है। इन कथानकों में तिब्बतियों को अल्पसंख्यक बताना, तिब्बत पर कब्जे को बीजिंग का आंतरिक मुद्दा बताना और तिब्बत को चीन का हिस्सा घोषित करना भी शामिल रहा है। चीन के इन झूठे कथानकों का समर्थन करने से बचें। इस तरह के कथानकों से तिब्बत पर चीन के उपनिवेशीकरण और तिब्बतियों पर आधिपत्य को न्यायोचित ठहराने में सहायता मिलती है, जबकि इनमें हम तिब्बतियों और तिब्बतियों के लिए अधिक सार्थक स्वतंत्रता के लिए बातचीत की गुंजाइश नहीं मिलती है।

3. चीन से चीनी संविधान के ढांचे के भीतर तिब्बत को वास्तविक और सार्थक स्वायत्तत्ता उपलब्ध कराने के लिए निर्वासित तिब्बत सरकार की मध्यम मार्ग नीति का समर्थन करने के साथ तिब्बत- चीन संघर्ष को हल करने के लिए बिना किसी पूर्व शर्त के परम पावन दलाई लामा के प्रतिनिधियों के साथ ठोस बातचीत में फिर से शामिल होने के लिए आह्वान करें।

4. पीआरसी सरकार की नीतियों के कारण तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर नकारात्मक प्रभाव को लेकर वैज्ञानिक अनुसंधान अध्ययन शुरू करने के लिए जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसी)’ का आह्वान करें।

5. चीन पर मानवाधिकार की स्थिति पर निगरानी और रिपोर्ट करने के लिए स्वतंत्र मानवाधिकार 5 संगठनों को वहां तक जाने देने की अनुमति देने का दबाव डालें। इसी तरह संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों, विशेष रूप से राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा और संघ और मानवाधिकार रक्षकों पर ध्यान केंद्रित करने वाले दूतों को स्थायी निमंत्रण दें। साथ ही जितनी जल्दी हो सके तिब्बत तक की उनकी यात्रा को सुविधाजनक बनाने की व्यवस्था कराएं।

6. 11वें पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी न्यिमा सहित सभी तिब्बती राजनीतिक कैदियों को बिना शर्त रिहा करने के लिए पीआरसी सरकार से आग्रह करें, जिनका ठिकाना और कुशलक्षेम 17 मई 1995 से अज्ञात है।

7. तिब्बत-चीन संघर्ष को देखते हुए तिब्बत में मानवाधिकारों की स्थिति को अंतरराष्ट्रीय और अनसुलझा मुद्दे के रूप में देखें। विश्व नेताओं के साथ मिलकर तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन और धार्मिक दमन पर चिंता व्यक्त करें और मैग्निट्स्की अधिनियम के तहत चीनी अधिकारियों को प्रतिबंधित राष्ट्रीय सूची में डालने के लिए अपनी सरकारों से आग्रह करें।

8. चीन के दुष्प्रचार और अधिनायकवादी अभियान चलाने वाले नेटवर्क से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय विधायी ढांचा स्थापित करें। दरअसल चीन का यह नेटवर्क लोकतांत्रिक संस्थानों में जनता के अविश्वास, राजनीतिक ध्रुवीकरण कराता है और क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीतिक स्थिरता और शांति के लिए खतरा पैदा करता है।

9. तिब्बती लोगों के वैध प्रतिनिधि के रूप में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के साथ अपने आधिकारिक और राजनयिक संबंधों को विस्तार दें और गहरा करें। यह सीटीए की वही सरकार सरकार है जो तिब्बत के स्वतंत्र रहने के दौरान ल्हासा में चली पूर्व सरकार की निरंतरता है।

10. अपने जन प्रतिनिधियों से सभी उपलब्ध मंचों पर तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता व्यक्त करने और आवाज उठाने का आग्रह करें।

  • तिब्बत के समर्थन में खड़े होने, सच्चाई के समर्थन में खड़े होने, शांति और न्याय में हमारे विश्वास को जीवित रखने के लिए हम आपकी सरकार और लोगों के प्रति बहुत आभारी हैं।
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