बिलासपुर। संतान की सलामती, लंबी उम्र एवं सुख-समृद्धि के लिए माताएं हलषष्ठी पूजा कर कमरछठ व्रत रखी है।महिलाएं सिरगिट्टी क्षेत्र में छोटा सा तालाब( कुंड)बनाकर विधि-विधान के साथ महिलाएं पूजा-अर्चना की।छत्तीसगढ़ में कमरछठ व्रत या हलषष्ठी का व्रत महिलाएं श्रद्धा और उत्साह के साथ करती हैं।
हलषष्ठी देवी को धरती का स्वरूप माना जाता है।महिलाएं दोपहर में सगरी खोदकर सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना कर आचार्यों पंडितों से कथा श्रवण करते हैं।और पूजन उपरांत घर के बड़ों का आशीर्वाद लेती है तथा अपने संतानों की पीठ पर कपड़े से हल्दी के लेप की छाप लगाकर पोती देतीं हैं।खमरछठ पूजा में पसहर चावल का भोग लगाने की मान्यता है, इसके चलते इस चावल का मुल्य अधिक रहता है।
खास बात यह है की पसहर चावल को खेतों में उगाया नहीं जाता। यह चावल बिना हल जोते अपने आप खेतों की मेड़, तालाब, पोखर या अन्य जगहों पर उगता है। भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ के जन्मोत्सव वाले दिन हलषष्ठी मनाए जाने के कारण बलदाऊ के शस्त्र हल को महत्व देने के लिए बिना हल चलाए उगने वाले पसहर चावल का पूजा में उपयोग किया जाता है। पूजा के दौरान महिलाएं पसहर चावल को पकाकर भोग लगाती है, साथ ही इसी चावल का सेवन कर व्रत तोड़ती हैं।