बिलासपुर । कोटा मित्रता की रिश्ते को मजबूत करने वाली राज्य के पारंपरिक त्यौहार भोजली अंचल में हर्षोल्लास एवं उत्साह के साथ मनाया गया।
सिर में भोजली रखकर मंजीरा मांदर की थाप के साथ गीत गाते हुए गली मोहल्ले का भ्रमण करते हुए भोजली विसर्जन किया।एक दूसरे को भोजली भेंट कर मित्रता का परिचय दिया।
इस दौरान बच्चे,बुजुर्ग,महिलाएं बड़ी संख्या में उपस्थित रही। रक्षाबंधन के दूसरे दिन भोजली पर्व का विशेष महत्व है।
ग्रामीण अंचल में इस त्यौहार का रंग विशेष छटा बिखेरती है।यह पर्व मित्रता,आदर और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। टोकनी में खाद मिट्टी लेकर धान,गेहूं ,जौ के दाने की बुवाई करते हैं। जब पौधे लहलहाते हुए हरे भरे उगकर बड़े हो जाते हैं तब प्रकृति अर्थात भोजली देवी की पूजा करते हैं। रक्षाबंधन के बाद पारंपरिक वेशभूषा एवं रीति रिवाज के साथ लड़कियां भोजली की टोकनी को सिर में रखकर विसर्जन के लिए निकलती है। साथ में महिलाएं देवी गंगा,देवी गंगा,,लहर तुरंगा जैसी गीत गाते हुए चलती रही। जिसमें बच्चे महिलाएं और बुजुर्ग शामिल होकर परंपरा को शोभायमान बनाते हैं। गली, मोहल्ले का भ्रमण करते हुए ग्राम देवी देवताओं की धूप अगरबत्ती के साथ पूजा करने के पश्चात विसर्जन यात्रा तालाब की ओर आगे बढ़ी। तलाब में एक साथ सभी भोजली की टोकनी को एक साथ रख कर ग्राम बैगा द्वारा हरियाली और खुशहाली की कामना के साथ पूजा अर्चना किया गया। तत्पश्चात भोजली का विसर्जन किया गया। विसर्जन के बाद भगवान भोलेनाथ सहित ग्राम क सभी देवताओं को भोजली अर्पण किया गया।साथ ही एक दूसरे के प्रति प्रेम,स्नेह और विश्वास के साथ मित्रता की डोर को मजबूत करने भोजली का आदान-प्रदान किया गया।